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बोन्साई का लघु आकार इसे निवासियों और प्रकृति के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाता है

ब्यूरो चीफ आर एल पांडेय

लखनऊ। अवध बोनसाई एसोसिएशन की सेक्रेटरी पदमा सिंह ने बताया कि अवध बोन्साई एसोसिएशन की स्थापना वर्ष 2000 में केवल जापानी कला को फैलाने के उद्देश्य से की गई थी, जिसे बोन्साई कहा जाता है, जो पेड़ों को लघु बनाने की कला है। इसे प्रकृति का सूक्ष्म रूप भी कहा जाता है।

भूमि की उच्च लागत और आवास की बढ़ती मांग के कारण, बंगले को उच्च- वृद्धि वाली इमारतों और छोटे फ्लैट्स के साथ बदल दिया जा रहा है, जिससे लोग प्राकृतिक वातावरण से वंचित होकर अप्राकृतिक परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हो रहे हैं। बोन्साई का लघु आकार इसे निवासियों और प्रकृति के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाता है।

आयोजक प्रियांशी ने बताया कि बोन्साई की उत्पत्ति चीन में हुई और जापान में इसका आधुनिक आकार विकसित हुआ और बाद में यह पूरी दुनिया में फैल गया। बोन्साई बनाने की शुरुआत में कुछ नियमों का पालन किया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इसे और भी सुंदर बनाने के लिए नए तकनीकों का उपयोग किया गया, जो प्रकृति के मूलभूत सिद्धांतों और नियमों की भावना को बनाए रखते हैं।

बनारस से पधारे सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि नए तकनीकों जैसे कि रेमिफिकेशन, आकार में गति, व्यापक तारों का उपयोग आकार देने में मदद करने, नेबारी यानी जड़ प्रणाली के विकास और पैडिंग का उपयोग, बोन्साई पौधे को एक डिजाइनर लुक देता है।
रवींद्रन दामोदरन, वीर चौधरी और सौमिक दास इनमें से कुछ बेहतरीन तकनीकों का परिचय देते हैं और सिखाते हैं। अभी भी कुछ अंतराल हैं जिन्हें भरने के लिए जयपुर से फहद मलिक को आमंत्रित थे। फहद एक युवा स्व-शिक्षित बोन्साई कलाकार हैं। मूल रूप से वह एमराल्ड काटने और पॉलिश करने में एक विशेषज्ञ थे, जो एक बहुत ही जटिल काम है। बाद में उन्हें बोन्साई का शौक हुआ और उन्होंने इस कला को अपने दम पर सीख लिया। वह 1 से 3 सितंबर तक होटल गोल्डन एप्पल, महानगर में सुबह 10.00 बजे से शाम 5.30 बजे तक 3 दिनों के लिए कार्यशाला आयोजित किया। दिन के पहले भाग में वह व्याख्यान दिए ,प्रदर्शन किया और दिन के दूसरे भाग में कार्यशाला आयोजित किया जिसमें पांच दर्जन सदस्य भाग लिए।