वास्तव में यूक्रेन का वर्तमान संकट पूरे विश्व पर अनेक आर्थिक, राजनीतिक व सैनिक प्रभाव डालेगा। यह तय है क्योंकि इस प्रकरण ने रूसी ताकत का प्रदर्शन करने के साथ साथ उसे पुनः एक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया है, जिसकी परिणति में विश्व को एक नए शीत युद्ध की आहट भी दिखने लगी है, यह कहना आवश्यक होगा कि ऐसी चरम तनाव की रणनीतिक परिस्थितियों में गलती की गुंजाइश कदापि नहीं होती...
सारी दुनिया जानती है कि यह शीत युद्ध का सबसे ज़्यादा तनाव भरा समय था, और दुनिया तबाही के कगार पर खड़ी थी। छोटी सी ग़लती भी विश्व युद्ध की चिंगारी बन सकती थी, फिर भी अमेरिका ने यह जोखिम लिया और सोवियत संघ को अपनी मिसाइलें हटानी पड़ीं और साथी देश क्यूबा को अमेरिकी दया पर छोड़ना पड़ा।
अमेरिकी धमकी से नहीं डरा रूस
आज नाटकीय रूप से विश्व राजनीति फिर उसी मोड़ पर खड़ी है जब तमाम आश्वासनों के बाद भी अमेरिका अपने कथित मित्र यूक्रेन के लिए ज़मीन पर कुछ करता दिखाई नहीं देता, 23 फरवरी को जब रूस ने दो यूक्रेनी प्रांतों डोनेटस्क और लुहांस्क को स्वतंत्र देश का दर्ज़ा दिया तब भी राष्ट्रपति मिस्टर बाइडेन रूस पर आर्थिक प्रतिबंध की धमकी तक ही सीमित रहे और उसके अगले दिन जब रूसी फौजों ने राजधानी कीव और खारकीव समेत कई यूक्रेनी इलाकों में हवाई हमले किये, तब भी अमेरिकी राष्ट्रपति यह कहते नज़र आए कि नाटो की फौजें यूक्रेन नहीं जाएंगी, रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाए जाएंगे और रूस को यूक्रेन से हट जाना चाहिए।
ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा जैसे नाटो के सहयोगी देश सिर्फ़ कड़ी निंदा तक सीमित हैं और रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने की बात कह कर अपने उत्तरदायित्वों को पूर्ण मान रहे हैं अथवा अपनी प्रतिष्ठा बचाने का प्रयास कर रहे हैं यह समझना मुश्किल है। दूसरी तरफ रूस की नीतियां इस विषय पर शीशे की तरह स्पष्ट हैं, यूक्रेन के अनेक रक्षा व हवाई ठिकानों पर लगातार हमलों के बाद राष्ट्रपति पुतिन ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, 'रूस अपनी सीमा से सटे यूक्रेन में नाटो का प्रसार किसी भी कीमत पर नहीं होने देगा, यूक्रेनी सरकार को अपने किये का दंड भुगतना होगा।' अमेरिका व नाटो देशों को स्पष्ट चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा, 'दुनिया का कोई भी देश बीच में आया तो उसके लिए इतना बुरा होगा जितना कभी उसने सोचा भी नहीं होगा, रूस अब पीछे हटने वाला नहीं है।'
परमाणु प्रतिरोधकता का सिद्धांत
रूस के इतने कड़े रुख का अनुमान संभवतया अमेरिका ने भी नहीं लगाया होगा और अगर अमेरिकी सामरिक विशेषज्ञों ने ऐसा अनुमान लगाया भी होगा तो फिलहाल उनके सामने कोई विशेष विकल्प बचते भी नहीं, वास्तव में यहां विश्व की एक बड़ी शक्ति अपनी सीमा तक पहुंच चुकी असुरक्षा के विरुद्ध कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है। यहां तक कि वे अमेरिका से भिड़ने को भी तैयार हैं जिसका सीधा सा आशय है कि रूस इस प्रश्न पर अब परमाणु हथियारों के साथ विश्व युद्ध से भी पीछे नहीं हटेगा। ऐसी रणनीतिक परिस्थितियों में परमाणु प्रतिरोधकता का सिद्धांत कार्य करता है, जब तनाव के शीर्ष पर नाभिकीय युद्ध से होने वाले संभावित महाविनाश का भय न सिर्फ युद्ध को रोकता है बल्कि युद्ध से होने वाली हानि के प्रति अनिच्छुक अथवा कम इच्छुक राष्ट्र को पीछे हटने के लिए बाध्य भी करता है।
जैसा कि इस वर्तमान संकट में दिखाई दे रहा है कि अमेरिका और नाटो के देश फिलहाल बयानबाज़ी तक ही सीमित हैं और रूस लगातार यूक्रेन के विरुद्ध जमीनी कार्यवाही करता जा रहा है, संभव है जल्दी ही रूस यूक्रेन में अपनी पसंदीदा सरकार स्थापित करवा के उसे अपने प्रभाव में ले लेगा, यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़िलेंस्की के लिए सबक है कि जिस अमेरिका के आश्वासन पर वे रूस से क्रीमिया और सिवस्तोपोल बंदरगाह की वापसी का दावा कर रहे थे, वह उन्हें युद्ध मे अकेला छोड़ कर दूर खड़ा तमाशा देख रहा है, वे मात्र अमेरिकी मोहरा सिद्ध हुए हैं जिनका अमेरिकी हितों की पूर्ति के लिए प्रयोग किया गया।
रूस को पुनः महाशक्ति के रूप में हुआ स्थापित
इस पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देखने पर लगता है कि रूसी ने इस विषय पर काफी सोच विचार के बाद योजना बनाई। न केवल सैनिक तैयारी की गई बल्कि कूटनीतिक रूप से चीन, अजरबैजान, बेलारूस व पाकिस्तान सहित कई राष्ट्रों को सक्रिय रूप से उन्होंने अपने साथ मिला रखा है। जबकि दूसरी ओर नाटो देश कड़ी निंदा, प्रतिबंध, आलोचना, बयानबाज़ी और एक दूसरे का मुंह देखने के अतिरिक्त विशेष कुछ करने की स्थिति में नहीं दिखते, जिसका ऐसे युद्ध मे कोई महत्व नहीं है।
वास्तव में यूक्रेन का वर्तमान संकट पूरे विश्व पर अनेक आर्थिक, राजनीतिक व सैनिक प्रभाव डालेगा। यह तय है क्योंकि इस प्रकरण ने रूसी ताकत का प्रदर्शन करने के साथ साथ उसे पुनः एक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया है, जिसकी परिणति में विश्व को एक नए शीत युद्ध की आहट भी दिखने लगी है, यह कहना आवश्यक होगा कि ऐसी चरम तनाव की रणनीतिक परिस्थितियों में गलती की गुंजाइश कदापि नहीं होती, किसी तरफ से भी की गई एक छोटी सी ग़लती या दुर्घटना संपूर्ण मानव सभ्यता का नामो निशान मिटा सकती है।
Russia Ukraine War: क्या अमेरिका को हद बताने के बाद राष्ट्रपति जेलेंस्की के कीव छोड़ने का इंतजार कर रहे हैं पुतिन?
राष्ट्रपति पुतिन के यूक्रेन पर हमला करने की अमेरिका, तुर्की, ब्रिटेन, जर्मनी समेत तमाम देश ने निंदा की है। जबकि चीन ने रूस का खुलकर साथ दिया। चीन ने यूक्रेन पर रूस की सैन्य कार्रवाई को हमला मानने से इनकार कर दिया। वहीं अभी ऐसा लग रहा है कि रूस ने फिलहाल अपने बड़े लक्ष्य को हासिल कर लिया है...
यूक्रेन संकट को लेकर ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका के दबदबे वाले नाटो संगठन ने तमाम धमकियां और चेतावनी देने के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से सेना वापस बुलाने की अपील की है। रूस को अब किसी की धमकी या चेतावनी की परवाह नहीं है। व्लादिमीर पुतिन ने स्पेशल ऑपरेशन की भी अनुमति दे दी है। इसके साथ-साथ विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पात्रुशेव अपने समकक्षों से चर्चा करके वैश्विक समर्थन लेने में लगे हैं। इसके साथ अनुमान लगाया जा रहा है कि राष्ट्रपति पुतिन अब यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के कीव छोड़ देने का इंतजार कर रहे हैं।
सामरिक मामलों के जानकारों का कहना है कि रूस की मंशा यूक्रेन के नागरिकों के साथ अच्छा व्यवहार बनाए रखने की है, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि हमले में केवल सैन्य ठिकाने आदि को ही निशाना बनाने की पहल होगी। गुरुवार को रूस द्वारा यूक्रेन पर तीनों सेनाओं ने एक साथ संयुक्त ऑपरेशन का तालमेल दिखाते हुए हमला किया। फिलहाल डोनबास क्षेत्र में उसके सैनिकों का दबदबा है। कीव के एयरफील्ड पर भी रूस के सैनिकों का कब्जा बताया जा रहा है। एक तरफ रूस के हेलीकाप्टर कीव के आसमान में मंडरा रहे हैं, दूसरी तरफ पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच टेलीफोन पर बातचीत भी हुई, जिसमें उन्होंने हिंसा और तनाव को तत्काल बंद करने की अपील की। उन्होंने राजनयिक वार्ता के रास्ते पर लौटने के लिए सभी पक्षों से कोशिश करने का आह्वान किया। साथ ही, इस दौरान पीएम ने यूक्रेन में भारतीय नागरिकों खासकर छात्रों की सुरक्षा के बारे में भारत की चिंताओं के बारे में भी पुतिन से चर्चा की।
रूस के लिए अमेरिका की आनी है एक और घुड़की
अमेरिका रूस को अपनी सेना वापस बुलाने के लिए एक और घुड़की दे सकता है। यह बात अलग है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने अमेरिकी समकक्ष की बात पर कितना ध्यान देते हैं। पुतिन ने यूक्रेन पर हमले को रूस की मजबूरी बताया। राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि उनके पास इसके सिवाय कोई चारा नहीं बचा था। इसके सामानांतर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि वह और उनका देश रूस के सामने समर्पण नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि मास्को में बैठे लोग जैसा सोच रहे हैं, वैसा वह नहीं होने देंगे। जेलेंस्की ने कहा कि वह देश की आजादी से कोई समझौता नहीं करेंगे और उनका देश रूस का मुकाबला करेगा।
यूरोप से बार-बार रूस को सबक सिखाने की अपील कर रहे हैं जेलेंस्की
यूक्रेन के राष्ट्रपति पिछले एक सप्ताह से लगातार अमेरिका और यूरोप के देशों से अपने देश की सुरक्षा के बाबत अपील कर रहे हैं। उन्होंने अमेरिका और नाटो संगठन से तीन-चार दिन पहले भी पूछा था कि यूक्रेन को संगठन में शामिल करने को लेकर वह अपनी स्पष्ट राय दें। गुरुवार को एक बार फिर जेलेंस्की ने पश्चिम की तरफ देखा। उन्होंने कहा कि यह यूरोप पर हमला है, लेकिन किसी भी नाटो सदस्य देश ने कोई आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं दी है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने रूस की कार्रवाई को यूरोप पर हमला जरूर बताया, लेकिन इसके आगे उन्होंने कुछ नहीं कहा है। बोरिस जॉनसन ने केवल इतना भर कहा कि रूस का यह हमला नाकामी में तब्दील होकर खत्म होगा।
PM Speech: प्रधानमंत्री बोले, 10 देशों के पास एक जैसे सुरक्षा उपकरण होंगे तो नहीं रहेगा अनोखापन, सभी देश खुद करें निर्माण
शुक्रवार को देश के रक्षा क्षेत्र की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि यदि 10 देशों के पास एक ही प्रकार के उपकरण होंगे तो उनमें कोई अनोखापन नहीं होगा। यह तभी संभव होगा जब सुरक्षा उपकरण सभी देश खुद बनाएंगे। ऐसा करने से उपकरणों में अनोखापन और आश्चर्य तत्व मौजूद रहेंगे।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि बीते कुछ वर्षों से भारत अपने रक्षा क्षेत्र में जिस आत्मनिर्भरता पर बल दे रहा है। उसका कमिटमेंट आपको इस वर्ष के बजट में भी दिखेगा। गुलामी के कालखंड में और आजादी के तुरंत बाद भी हमारी डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग की ताकत बहुत थी। दूसरे विश्व युद्ध में भारत में बने हथियारों ने बड़ी भूमिका निभाई। हालांकि बाद के वर्षों में हमारी ताकत कमजोर होती गई।
National War Memorial Day: तीसरी वर्षगांठ पर जानिए राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के बारे में, सेना प्रमुखों ने वीर शहीदों को दी श्रद्धांजलि
नेशनल वॉर मेमोरियल की तीसरी वर्षगांठ पर भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार और सेना के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे ने वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की। नेशनल वॉर मेमोरियल डे अमेरिकी गृह युद्ध में मारे गए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद किसी भी युद्ध में शहीद हुए सैनिक के सम्मान में इस दिन को खास तौर पर मनाया जाता है।
कैसे हुई शुरुआत
बता दें कि 30 मई, 1868 को पहली बार गणतंत्र की ग्रैंड आर्मी के जनक जॉन ए लोगान द्वारा स्मृति दिवस घोषित किया गया था, जो पूर्व केंद्रीय नाविकों और सैनिकों का एक संगठन था। 1968 में कांग्रेस द्वारा यूनिफॉर्म मंडे हॉलिडे एक्ट पारित किया गया था ताकि मई में अंतिम सोमवार के रूप में स्मारक दिवस की स्थापना की जा सके। इसके बाद 1973 में न्यूयॉर्क, मई में अंतिम सोमवार वैधानिक अवकाश के रूप में मेमोरियल डे नामित करने वाला पहला राज्य बना। 1800 के दशक के अंत तक विभिन्न राज्यों ने स्मृति दिवस को कानूनी अवकाश घोषित कर दिया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, उन लोगों को सम्मानित करने की परंपरा बन गई जो अमेरिका युद्ध में मारे गए और पूरे संयुक्त राज्य में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में स्थापित हुए। भारत भी स्मृति दिवास मनाता है। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 फरवरी 2019 को इंडिया गेट पर युद्ध स्मारक का उद्घाटन कर देश को समर्पित किया।