ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ। भारत में मानसून का मौसम एक खुशनुमा तस्वीर पेश करता है, लेकिन साथ ही डेंगू और मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियां भी आ जाती हैं। अक्सर सामान्य बुखार समझा जाने वाला डेंगू लगभग 5% मामलों में तेजी से जानलेवा बन सकता है। डेंगू के इलाज को लेकर कई चिकित्सीय भ्रांतियाँ भी लोगों को समय पर इलाज मिलने में बाधा बन जाती हैं। इनमें से एक भ्रांति अस्पताल के उपकरण जैसे वेंटिलेटर और डायलिसिस मशीनों से जुड़ी होती है। कई लोग मानते हैं कि इलाज में इन मशीनों का उपयोग जीवन के अंत का संकेत होता है, लेकिन यह बात सच्चाई से कोसों दूर है। लखनऊ के मेदांता अस्पताल में 41 दिनों तक भर्ती रहने के बाद डेंगू हेमोरेजिक बुखार से पीड़ित श्री महिप गौर (नाम परिवर्तित) पूरी तरह स्वस्थ हो गए हैं, जिससे यह साबित हुआ है कि एडवांस्ड मेडिकल सुविधाएं डेंगू जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ने में कितनी महत्वपूर्ण होती हैं।
40 वर्षीय माहीप गौर के लिए डेंगू की लड़ाई एक बुखार से शुरू हुई, जो तीन दिनों तक खत्म नहीं हुआ और ओवर द काउंटर मिलने वाली दवाइयों से भी नियंत्रित नहीं हो पाया।
बारिश के मौसम में तेज और लगातार बुखार एक चेतावनी है, खासकर अगर इसके साथ तेज पेट दर्द, लगातार उल्टी, मसूड़ों से खून आना, सुस्ती, बेचैनी या सूजन बढ़ने जैसे लक्षण हों। महिप के मामले में चौथे दिन उनके नाक और मुंह से खून आना शुरू हो गया, जो डेंगू का एक स्पष्ट संकेत है। जांच कराने पर उन्हें डेंगू होने की पुष्टि हुई। अन्य परिक्षण करवाने से पता चला की खून के थक्के बनने के लिए जरूरी प्लेटलेट्स की संख्या खतरनाक रूप से घटकर 50,000 हो गई थी (सामान्य सीमा 1.5 लाख से 4.0 लाख प्रति माइक्रोलीटर होती है)।
महिप की पत्नी सुजाता (नाम परिवर्तित) ने बताया, "डेंगू अपनी अनिश्चित प्रकृति के लिए जाना जाता है। शुरुआती लक्षण हल्के हो सकते हैं, लेकिन स्थिति 1-2 दिनों के भीतर तेजी से बिगड़ सकती है। हम उन्हे तुरंत मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ ले आए जो अपनी मल्टी-सुपर स्पेशियलिटी, क्रिटिकल केयर के लिए जाना जाता है।"
मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ पहुंचने पर महिप की स्थिति गंभीर थी और उन्हें सीधे आईसीयू ले जाया गया। उनका ब्लड प्रेशर कम था, वह बेहोश होने लगा था, नाक और मुंह से खून आ रहा था, फेफड़ों और पेट में पानी भर रहा था और प्लेटलेट्स की संख्या बहुत कम थी। इन सभी स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए तुरंत इलाज की जरूरत थी। मेदांता लखनऊ में क्रिटिकल केयर की डॉ विदुषी कुलश्रेष्ठा बताती हैं, “हमने ब्लड प्रेशर बनाए रखने के लिए दवाएं दीं, खून की कमी को पूरा करने के लिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया, और शरीर में पानी की कमी दूर करने के लिए इंट्रावेनस फ्लूइड्स दिए।"
शुरुआती प्रयासों के बावजूद, महिप की स्थिति बिगड़ती गई, जिससे उनके लिवर और किडनी जैसे अंग प्रभावित हुए, ऐसे में वेंटिलेटर और डायलिसिस मशीन जैसे जीवन-रक्षक उपकरण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ कुलश्रेष्ठ बताती हैं, “लाइफ सपोर्ट फेल हो रहे अंगों को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है, शरीर को किए जा रहे इलाज के प्रति प्रतिक्रिया और वायरस को खत्म करने के लिए समय देता है। महिप को सांस लेने के लिए वेंटिलेटर और किडनी की मदद के लिए डायलिसिस की जरूरत पड़ी।”
अगले कुछ हफ्ते धैर्य और संघर्ष से भरे हुए थे। आईसीयू और एचडीयू (हाई डिपेंडेंसी यूनिट) की टीमों के लगातार सहयोग के साथ, महिप में धीरे-धीरे सुधार के संकेत दिखने शुरू हुए। जैसे ही उनकी हालत स्थिर हुई, डॉक्टरों ने उन्हें धीरे-धीरे वेंटिलेटर और डायलिसिस से हटाना शुरू किया। साथ ही, उनका टीबी और मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट जैसी अतिरिक्त जटिलताओं का भी इलाज हुआ।
पिछले दिनों को याद करते हुए, महिप ने मेदांता क्रिटिकल केयर टीम का आभार व्यक्त किया, "डॉक्टरों ने मेरा इलाज परिवार की तरह किया। उनकी दिन-रात की देखभाल और ध्यान ने मेरी रिकवरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।"
महिप की कहानी एक महत्वपूर्ण संदेश देती है, डेंगू को कभी भी नजरंदाज नहीं करना चाहिए। डेंगू का जल्दी पता लगना और समय पर मेदांता जैसे एक अच्छे हॉस्पिटल में इलाज, जीवन के लिए खतरा बनने वाली जटिलताओं जैसे शॉक, गंभीर रक्तस्राव और अंगों के खराब होने से बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
महिप ने अस्पताल छोड़ते समय कहा, “मशीनों से डरें नहीं। ये कुशल डॉक्टरों द्वारा बीमारी का इलाज और ठीक होने के बीच के अंतर को खत्म करने के लिए उपयोग किए जाने वाली उपकरण हैं।”