*लखीमपुर, 2 सितंबर 2024* – लखीमपुर खीरी ज़िले में एक महीने के भीतर चार व्यक्तियों की दुखद मौतें बाघ के हमलों में हो चुकी हैं। जनपद बहराइच में दस बच्चों का शिकार भेड़ियों द्वारा किया गया है। इन घटनाओं की गंभीरता के बावजूद, सरकारी कार्रवाई अत्यधिक धीमी रही है, जिससे स्थानीय आबादी में गहरा आक्रोश पैदा हो गया है।
*लापरवाही और देरी से प्रतिक्रिया*
पहली मौत एक चेतावनी होनी चाहिए थी, लेकिन नौकरशाही में देरी और जांच रिपोर्ट समय पर दर्ज न होने के कारण आवश्यक सुरक्षा उपाय नहीं लिए गए। इस घटना श्रृंखला ने इस क्षेत्र में मानवाधिकारों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कानून लोगों को अपनी सुरक्षा में हथियारों के उपयोग से रोकते हैं, जिससे निवासी खुद को असहाय और छोड़ दिया हुआ महसूस करते हैं।
*बढ़ते खतरे के लिए अपर्याप्त संसाधन*
लखीमपुर में 31,108 हेक्टेयर का विशाल वन क्षेत्र शामिल है, लेकिन स्थानीय वन विभाग बेहद कम संसाधनों से लैस है। इमलिया गांव में केवल चार पिंजरे, दो ड्रोन, और 24 कैमरे तैनात किए गए हैं, लेकिन इनमें से एक पिंजरा ख़राब निकला, जो इन खतरों को कितनी कम गंभीरता से लिया जा रहा है, इसे दर्शाता है।
*टाइगर अभयारण्यों का बढ़ता संकट*
सरकार द्वारा टाइगर प्रोजेक्ट्स और अभयारण्यों का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, लेकिन इससे मानव जीवन की अनदेखी की जा रही है। स्वदेशी समुदायों को उनकी पुश्तैनी जमीनों से विस्थापित किया जा रहा है, और उन्हें कोई सहायता नहीं मिल रही है, जबकि बढ़ती बाघ और तेंदुआ जैसी हिंसक वन्य जीवों की संख्या का प्रबंधन अधूरा है। क्या हम वास्तव में इन संरक्षण प्रयासों के परिणामों के लिए तैयार हैं, या हम एक संकट को दूसरे संकट से बदल रहे हैं?
*हालिया बयानों में*
*अखिल भारतीय वन्यजीव संरक्षण समिति के अध्यक्ष, डॉ. अनिल कुमार* ने कहा, "यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। बाघ संरक्षण के नाम पर हम इंसानी जिंदगियों की कीमत नहीं चुका सकते। सरकार को तुरंत प्रभाव से ऐसे क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ानी चाहिए और स्थानीय लोगों को भी आत्मरक्षा के लिए सक्षम बनाना चाहिए।"
*पटेल श्री कृष्ण* ने कहा, "यह केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि एक गंभीर मानवाधिकार संकट भी है। सरकार को दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और जंगल से सटे इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए।"
*सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती रमा देवी* ने कहा, "स्वदेशी समुदायों को उनकी भूमि से विस्थापित करना और उन्हें इन जानवरों के रहमोकरम पर छोड़ देना एक बड़ी विफलता है। यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह इन लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और उन्हें उनके अधिकार वापस दिलाए।"
जैसे-जैसे मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और स्थानीय आबादी में भय का माहौल बनता जा रहा है, सवाल यह उठता है कि कितनी ज़िंदगियाँ खोने के बाद प्रशासन कोई ठोस कदम उठाएगा। लखीमपुर के लोग जवाब मांग रहे हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात, वे अपनी सुरक्षा के अधिकार की मांग कर रहे हैं।
*कैप्टन मनोज कुमार सिंह*, राष्ट्रीय प्रवक्ता, राष्ट्रीय किसान शक्ति संगठन, मानव-वन्यजीव संघर्ष शोधकर्ता और फिल्म निर्माता