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उत्तराखंड में गुलदार का हमला: घर के आंगन से पांच साल के बच्चे को उठा ले गया था गुलदा

रिखणीखाल, पौड़ी गढ़वाल:* एक दिल दहला देने वाली घटना में रक्षाबंधन मनाने अपने नानी के घर आए पांच साल के आदित्य को गुलदार ने घर के आंगन से उठा लिया। यह घटना रिखणीखाल विकासखंड के गुठेरथा ग्राम पंचायत के कोटा गांव में हुई, जिससे पूरे इलाके में शोक और भय का माहौल व्याप्त हो गया है। बच्चे की मां, अर्चना देवी, अपने मायके रक्षाबंधन मनाने आई थीं, जब यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी।

ग्रामवासियों के अनुसार, अर्चना देवी अपने पांच साल के बेटे के साथ कोटा गांव आई थीं। दिनभर पूरे परिवार और गांव वालों के साथ राखी का पर्व खुशी से मनाया गया था, लेकिन शाम होते ही स्थिति बदल गई। शाम करीब 7 बजे, जब बच्चा घर के आंगन में खेल रहा था, तभी घात लगाए बैठे गुलदार ने हमला कर दिया और उसे जबड़ों में दबाकर जंगल की ओर भाग गया।

घटना के तुरंत बाद, गांव में हड़कंप मच गया। सैकड़ों ग्रामीणों ने तुरंत बच्चे की तलाश शुरू कर दी। रिखणीखाल के कानूनगो प्रीतम सिंह ने बताया कि घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर झाड़ियों में बच्चे का एक पैर मिला है, जिससे उसके जीवित बचे होने की उम्मीदें धूमिल हो गई हैं। तलाश अभियान अभी जारी है, लेकिन समय बीतने के साथ उम्मीदें कम होती जा रही हैं।

*कैप्टन मनोज कुमार सिंह का स्थानीयों से संवाद:*
राष्ट्रीय किसान शक्ति संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता कैप्टन मनोज कुमार सिंह, जो मानव-वन्यजीव संघर्ष के शोधकर्ता हैं, इस घटना के बाद प्रभावित क्षेत्र में पहुंचे। वह इन घटनाओं पर गहरी संवेदनशीलता रखते हुए आदमखोर बाघ पर एक फिल्म भी बना रहे हैं। उन्होंने स्थानीय ग्रामीणों और बच्चों से गुलदार के हमले के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की, घटनाओं के बाद की स्थितियों और मुआवजे पर चर्चा की। कैप्टन सिंह ने इस दु:खद परिस्थिति से व्यक्तिगत रूप से जुड़ाव महसूस किया।

उन्होंने बताया कि इलाके में न केवल गुलदार का खतरा मंडरा रहा है, बल्कि जंगली सूअर, बंदर और लंगूरों द्वारा फसलों को नष्ट कर देने की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं। ग्रामीण अब जान-माल के खतरे से जूझ रहे हैं और इस वजह से गांव के लोग अपने घरों और जमीनों को छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, पानी की गंभीर समस्या, और इन जंगली जानवरों का आतंक ग्रामीणों के पलायन का मुख्य कारण बन गया है।

कैप्टन सिंह ने कहा कि सरकार और स्थानीय अधिकारियों को इस समस्या का स्थायी समाधान निकालने की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

*सरकार और अधिकारियों से अपील:*
हमारी सरकार और अधिकारियों से अपील है कि वन्यजीवों और मानव जीवन के बीच बढ़ते संघर्ष को रोकने के लिए त्वरित और कारगर उपाय किए जाएं। पीड़ित परिवारों को तत्काल और उचित मुआवजा दिया जाए, जिससे उनके जीवन को दोबारा सामान्य बनाने में मदद मिल सके। वर्तमान में मानव जीवन के मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये की राशि बेहद कम है। इसे बढ़ाकर 15 लाख रुपये किया जाना चाहिए, साथ ही आश्रित परिवार के एक सदस्य को नौकरी की सहायता दी जानी चाहिए।

इसके अलावा, मुआवजे की प्रक्रिया में लगने वाले समय और खर्च को कम करने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए।व्यक्ति या पशु के मरने या फसल के नुक़सान होने पर उसके मुआवज़े की रक़म के लिए ज़रूरती काग़ज़ात जुटाने और सरकारी प्रक्रिया में होने वाले खर्च और विलंब के लिए अतिरिक्त मुआवज़ा देने का प्रावधान होना चाहिए ,और यह व्यक्ति विशेष भुक्तभोगी की ज़िम्मेदारी ना होकर बल्कि गाँव के प्रधान और ब्लॉक स्तर के अधिकारी की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए ,ऐसा ना होने पर दंड व्यवस्था और आर्थिक दंड दिया जाये । रामीणों को जंगली जानवरों से अपनी फसल और जानमाल की रक्षा करने के लिए समुचित सुरक्षा उपकरण उपलब्ध करवाए जाने चाहिए।

सरकार से यह भी प्रार्थना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाने के प्रयास किए जाएं ताकि ग्रामीण पलायन न करें और अपने गांव में सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकें। साथ ही, जंगली जानवरों के आक्रमण से प्रभावित ग्रामीणों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए वन विभाग और प्रशासन को चौकस रहने की आवश्यकता है।