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महिलाओं की सुरक्षा के लिए समाज में गहरे सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता है

ब्यूरो चीफ आर एल पांडेय

लखनऊ। "हील फाउन्डेशन" (Health Education Awareness & Learning) एवं "जीवन-दीप संस्था" द्वारा लखनऊ कैंसर इंस्टीटयूट, जियामऊ के सभागार में "स्वतंत्र भारत में महिलायें कितनी सुरक्षित, कारण एवं समाधान" विषय पर आयोजित परिचर्चा का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ।

इस परिचर्चा में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों, समाजसेवियों, और नीतिनिर्माताओं जिनमें डा० सुनीता ऐरन वरिष्ठ पत्रकार (हिन्दुस्तान टाइम्स), प्रोफेसर मानसिक रोग विभाग के.जी.एम. यू, डॉ० श्वेता सिंह, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष नवयुग डिग्री कालेज डॉ० सृष्टि अस्थाना, समाज सेवी डॉ० संगीता शर्मा, सीनियर कन्सल्टेन्ट पैथेलॉजी डॉ० रश्मि चतुर्वेदी, पार्षद भारतीय जनता पार्टी श्रीमती वर्तिका सिंह, सदस्य, प्रदेश कार्यसमिति श्रीमती शबनम पाण्डेय, प्रोफेसर विभागाध्यक्ष एवं प्रो. वाइस चांसलर, के.जी.एम.यू. डॉ. अपजीत कौर, ने भाग लिया और स्वतंत्र भारत में महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन चर्चा की। उन्होंनें महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े विभिन्न पहलुओं जैसे सामाजिक दृष्टिकोण, कानूनी ढांचे की कमजोरी, शिक्षा की कमी, बढ़ती असुरक्षा में सोशल मीडिया की भूमिका तथा पुलिस और न्याय प्रणाली में लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने पर अपने विचार व्यक्त किए, वक्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए समाज में गहरे सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता है. जिसमें महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता का भाव प्रबल हो। शिक्षा और जनजागरूकता को महिलाओं की सुरक्षा में महत्वपूर्ण माना गया, जिसके लिए स्कूलों और समाज में व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की सिफारिश की गई। इस कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों ने मिलकर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ ठोस सुझाव और समाधान प्रस्तुत किए। इनमें महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, कानूनी सुधार, और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया, ताकि महिलाओं को त्वरित और प्रभावी न्याय मिल सके।

कार्यक्रम का समापन करते हुए श्रीमती निर्मला पन्त , ने सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों, और मीडिया का धन्यवाद किया। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस कार्यक्रम से निकले सुझावों और निष्कर्षों को नीतिनिर्माताओं और संबंधित अधिकारियों तक पहुंचाया जाएगा, ताकि महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए जा सकें।